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लेखनी कहानी -01-Jun-2022 डायरी जून 2022

इतना सन्नाटा क्यों है भाई 


सखि,
क्या बताऊं तुम्हें कि आजकल किस कदर दहशत का माहौल है ? जो लोग कहते आये हैं कि उन्हें और उनकी बीवियों को इस देश में डर लग रहा है । दरअसल वे कहना चाह रहे थे कि पूरे देश को और उनकी बीवियों को उन्हीं से या उनकी ही बिरादरी के लोगों से डर लग रहा है । पर मजे की बात यह है सखि कि जिसकी बीवी को डर लग रहा बताया था वह अपने ही शौहर को छोड़कर चली गई । तो इस बात का पुख्ता सबूत मिल गया कि वाकई वह डर किससे रही थी । 

मैं आज शहर की सड़कों पर यह देखने के लिए निकला कि वास्तव में कोई डरा हुआ है या यों ही डर का माहौल बनाया जा रहा है । पर यह क्या सखि ? सारी सड़कें सूनी , बाजार बंद बंद सा । गलियां उदास सी बैठी हुई थीं जैसे कि वे किसी शोक सभा में आई हों । इतना वीराना तो "रामसे ब्रदर्स" की डरावनी फिल्म "वीराना" में भी नहीं था जितना आज सड़कों पर पसरा हुआ था । 

मैंने चौंककर इधर उधर देखा । कोई नजर नहीं आया । इंसान तो छोड़ो जानवर भी नजर नहीं आए । वर्ना तो इस देश की सड़कों पर इंसानों से ज्यादा तो जानवर ही नजर आ जाते हैं । थोड़ी देर में कुत्ता- कुतिया का एक जोड़ा नजर आ गया । शायद कुत्ता अपनी "बिचफ्रेंड" को सैर कराने ले आया हो कि आज तो बाजार सूना सा पड़ा है इसलिए "खुल्लम खुल्ला" प्यार करने का आज सुनहरा अवसर आया है तो क्यों न हम आज के दिन को "सेलिब्रेट" करें ? और वे थोड़ी मस्ती करने आ गये हों बाजार में । बड़ी खूबसूरत जोड़ी थी उनकी ।

इतने में एक बूढा रिक्शेवाला अपना खाली रिक्शा लिए हुए आ गया । मैंने पूछा "इतना सन्नाटा क्यों है भाई" ? 
वो रिक्शावाला बोला "हुजूर , आज शुक्रवार है न" । 

उसके इस जवाब से मैं चौंका । शुक्रवार का सन्नाटे से क्या संबंध है, मेरे ध्यान में नहीं आया तो उसी रिक्शेवाले से पूछ लिया 
"शुक्रवार को क्या बाजार बंद रहता है" ? 
"नहीं हुजूर,  अब तक तो नहीं रहता था , पर अब रहने लगा है और आगे भी संभवत : रहेगा" ।
"ऐसा क्यों , क्या व्यापिरयों ने ऐसा कोई प्रस्ताव पास कर दिया है" ? 
"नहीं हुजूर,  व्यापारी क्यों चाहेंगे बाजार बंद करना । वो तो उनकी मजबूरी है" ? 
"कैसी मजबूरी" ? 

रिक्शेवाले ने एक बार सोचा कि वह बताये या ना बताये । आजकल किसी को सारी बातें खुलकर बताना भारी पड़ सकता है । इसलिए सोच समझकर ही बताया जाता है । अचानक उसने मेरा नाम पूछ लिया और मैंने बता दिया । तो वह बोला 
"आप तो अपने ही हैं साहब , आपसे क्या छुपाना । इसलिए बता देता हूं वर्ना तो हमारा तो मुंह खोलना भी भारी काम है" । उसके चेहरे से खौफ स्पष्ट नजर आ रहा था।  
"तो साफ साफ बताओ कि बात क्या है ? शुक्रवार को ऐसा क्या है जो बाजार बंद रहने लगा" ? 

उसने अपना मुंह मेरे कान के पास लाकर कहा "आज के दिन उन्मादियों की भीड़ अपने धर्मस्थल से "शांतिपाठ" करके हाथों में पत्थर,  ईंट, तलवार,  बम, पेट्रोल बम वगैरह शांतिप्रिय वस्तुएं लेकर आती है और फिर वह उन्मादी भीड़ सडकों पर जिस तरह "शांतिपाठ" करती है तो लोग डरकर कहीं भाग जाते हैं, छुप जाते हैं या पीटे जाते हैं । इसलिए उस "शांतियज्ञ" से बचन के लिए अब लोग शुक्रवार को बाजार आते ही नहीं हैं । अपने अपने घरों में दुबके सहमे से बैठे रहते हैं" । 

यह सुनकर मैं अवाक् रह गया । कैसे कैसे दिन देखने को मिल रहे हैं सखि । पता नहीं आगे क्या होगा ? अब तो लग रहा है कि वास्तव में डर का माहौल है  । पर ये डर किससे और किसे है , ये अलग बात है । 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
10.6.22 

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3 Comments

Radhika

09-Mar-2023 12:46 PM

Nice

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Seema Priyadarshini sahay

15-Jun-2022 06:23 PM

बेहतरीन

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Gunjan Kamal

15-Jun-2022 03:44 PM

शानदार

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